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    'वर्ल्ड कप के बाद मेरे लिए इंडिया में खेलना मुश्किल':उन्मुक्त चंद बोले- मेरी डॉक्यूमेंट्री से टूटे हुए सपनों को नई राह और पहचान मिलेगी

    12 hours ago

    12 सितंबर को एक ऐसी डॉक्यूमेंट्री रिलीज हो रही है, जो उस खिलाड़ी की कहानी कहती है जिसने भारत को अंडर-19 वर्ल्ड कप जिताया, लेकिन जिसे कभी टीम इंडिया की जर्सी पहनने का मौका नहीं मिला। एक ऐसा खिलाड़ी जिसने लाखों उम्मीदें जगाईं, लेकिन जब सपनों को हकीकत में बदलने का वक्त आया, तो हालात ने साथ नहीं दिया और सिर्फ 28 साल की उम्र में संन्यास लेना पड़ा।फिल्ममेकर राघव खन्ना द्वारा बनाई गई यह डॉक्यूमेंट्री सिर्फ एक क्रिकेटर की कहानी नहीं, बल्कि हर उस इंसान की कहानी है जो एक और मौका, एक दूसरी शुरुआत चाहता है। दैनिक भास्कर ने इस फिल्म के नायक उन्मुक्त चंद और निर्देशक राघव खन्ना से खास बातचीत की… सवाल- जब पहली बार अपने हाथ में बैट पकड़ा था, तब क्या सोचा था कि एक दिन इसी बैट से वर्ल्ड कप भी लेकर आऊंगा? उन्मुक्त- नहीं, मैंने ऐसा बिल्कुल नहीं सोचा था। पर हां, एक सपना जरूर था। मैं चार साल का था जब मैंने पहली बार क्रिकेट खेलना शुरू किया था। 11-12 साल की उम्र में अकादमी भी जॉइन कर ली थी। और काफी हद तक ये पता था कि मैं क्रिकेटर ही बनूंगा। मैं अपनी स्क्रैप बुक में यही इच्छा लिखा करता था। और अंडर-19 वर्ल्ड कप खेलना किसी भी खिलाड़ी के लिए सबसे बड़ा मोमेंट होता है, जो मैंने भी जिया। सवाल- राघव, आपकी उन्मुक्त से कैसे मुलाकात हुई, और आपने कैसे सोचा कि इस पर एक डॉक्यूमेंट्री बननी चाहिए? राघव- भारत में लोगों को क्रिकेट का जबरदस्त जुनून है, मुझे भी बहुत पैशन है। मैंने भी गली-मोहल्ले में खूब क्रिकेट खेला है और मैं खुद को सबसे बड़ा क्रिकेट प्रेमी मानता हूं। जब 2011 में एम.एस. धोनी की कप्तानी में हमने वर्ल्ड कप जीता, तब देशभर में एक नई ऊर्जा आई थी। और ठीक अगले साल, 2012 में अंडर-19 वर्ल्ड कप में उन्मुक्त ने हमें जीत दिलाई। मीडिया ने उन्हें रातों-रात स्टार बना दिया। सभी को लगा था कि अब ये खिलाड़ी जल्द ही सीनियर टीम में दिखेगा। फिर एक दिन फोन पर नोटिफिकेशन आया "उन्मुक्त ने टीम इंडिया से संन्यास ले लिया है और अमेरिका जा रहे हैं"। उस पल मेरे मन में बहुत सारे सवाल उठे। इतना टैलेंटेड लड़का इतनी जल्दी रिटायर क्यों हो रहा है? ज़रूर इसके पीछे कोई गहरी कहानी है। मैंने उन्मुक्त से संपर्क किया, लेकिन वो अमेरिका जा चुके थे। बाद में जब मैं किसी काम से अमेरिका गया, तो उनसे मुलाकात हुई। देखिए, किसी महान व्यक्ति की कहानी कहना आसान नहीं होता। वह प्रेरणादायक तो हो सकती है, लेकिन हर किसी से जुड़ नहीं पाती। पर उन्मुक्त की कहानी सिर्फ प्रेरणा नहीं, बल्कि पहचान भी देती है। 19 की उम्र में जिसे 'महान' कहा गया, उसे 24 में भुला दिया गया। फिर भी वो हार नहीं मानता और खुद को एक दूसरा मौका देता है। यही बात मुझे छू गई। सवाल- जब राघव ने आप पर डॉक्यूमेंट्री बनाने की बात की, तब क्या आपके मन में संकोच था? उन्मुक्त- मैंने अपनी कहानी से अब शांति पा ली है। जब मैं अमेरिका शिफ्ट हुआ, तो बहुत दिक्कतें आईं। जिस इंडिया कैप के लिए मैं खेलता था, जो मेरी प्रेरणा थी, मुझे उसका लक्ष्य बदलना पड़ा। लेकिन उस दौर में मैंने जिंदगी के बारे में बहुत कुछ सीखा। समय के साथ सब ठीक हो गया। अब मैं अपनी कहानी से डरता नहीं, बल्कि उसका दोस्त बन चुका हूं। राघव के साथ बीते 3-4 साल बहुत अच्छे रहे। उन्होंने मुझे इतना सहज कर दिया कि मैं खुलकर अपनी कहानी उन्हें बता सका। सवाल- संन्यास लेने का फैसला क्या निजी था या किसी दबाव का नतीजा? उन्मुक्त- मैंने कई साल दिल्ली से रणजी ट्रॉफी खेली, फिर उत्तराखंड गया, फिर वापस दिल्ली आया। लेकिन सबकुछ वैसा नहीं हुआ जैसा मैंने सोचा था। दबाव बढ़ता जा रहा था। मुझे लगने लगा कि यहां आगे खेलना अब मुश्किल है। और फिर कुछ ऐसे पल आए जिससे मेरे अंदर से क्रिकेट का जुनून ही कम होने लगा। वैसे भी एक खिलाड़ी की उम्र सीमित होती है। इसलिए मैंने 2021 में संन्यास लिया और अमेरिका में नए मौके तलाशने लगा। सवाल- आपके कोच उदित ने कहा कि बुरा वक्त तो सचिन और कोहली जैसे खिलाड़ियों पर भी आता है, लेकिन उन्हें सपोर्ट मिला, उन्मुक्त अकेला रह गया। उन्मुक्त- कॉल्स तो बहुत आए, लेकिन आज के प्रोफेशनल स्पोर्ट्स की परिभाषा बदल चुकी है। कभी सपोर्ट मिलता है, कभी नहीं। मेरे लिए दिल्ली में उस वक्त क्रिकेट खेलना मुश्किल हो गया था। मैं सिर्फ बेंच पर बैठने के लिए नहीं खेलता था। मुझे खेलते रहना था। आज के समय में 25-26 की उम्र तक आपको टीम इंडिया से खेल लेना चाहिए, वर्ना चयनकर्ता आगे देखने लगते हैं। जब अमेरिका से मौका मिला, तो मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और अब मैं बाकी अंतरराष्ट्रीय लीग्स को एक्सप्लोर करना चाहता हूं। सवाल- क्या डॉक्यूमेंट्री बनाते समय कोई चुनौतियां भी आईं? राघव- आंकड़े तो हर खिलाड़ी के सार्वजनिक होते हैं, लेकिन असली लड़ाई जो वो रोज़ अपने भीतर लड़ता है, उसे दिखाना हमारा मकसद था। मैं उन्मुक्त और उनके माता-पिता का आभारी हूं, जिन्होंने मुझ पर भरोसा किया। अपने देश को छोड़कर, किसी दूसरे देश में जाकर जीरो से सब कुछ शुरू करना आसान नहीं होता। ये फिल्म उन सभी लोगों को उम्मीद देगी जो जीवन में दूसरा मौका चाहते हैं या जो अपने संघर्ष में अकेले पड़ चुके हैं। सवाल- दर्शक आपकी कहानी से क्या सीखकर निकलें? उन्मुक्त- जब मैं अपनी जिंदगी को पीछे मुड़कर देखता हूं, तो लगता है कि उतार-चढ़ाव से भरी रही है। अंडर-19 वर्ल्ड कप में कप्तानी की, और फिर एक वक्त ऐसा भी आया जब रणजी से बाहर हो गया। ऐसा लगने लगा कि मैं बस एक क्लब प्लेयर रह जाऊंगा। लेकिन मैंने हर इमोशन बहुत जल्दी-जल्दी महसूस किया। अब मुझे अपने अतीत से डर नहीं लगता। मैंने उसे अपना लिया है। मुझे पता है कि जीवन में सफलता भी आएगी और असफलता भी। ये हर किसी की जिंदगी में होता है, और मेरी कहानी शायद इसलिए हर किसी से जुड़ सकेगी। सवाल- आपने इंस्टाग्राम पर लिखा है “फीनिक्स की तरह उठो”, ऐसे मुश्किल वक्त में आपके साथ कौन सबसे मजबूती से खड़ा रहा? उन्मुक्त- मेरी पत्नी सिमरन। हम 2018 से साथ हैं और 2021 में शादी की। उन्होंने मेरा सबसे कठिन समय देखा है, जब सबकुछ गिर रहा था। जिस तरह से उन्होंने मेरा साथ दिया, वो मेरे लिए बहुत ताकत देने वाला था। वो वक्त नहीं देखा जब सब मेरी तारीफ कर रहे थे, लेकिन जब मैं टूट रहा था तब वो मेरे साथ थीं। यही रिश्ता मजबूत बनाता है। और इस भरोसे की ताकत ने मुझे दोबारा खड़ा किया। डॉक्यूमेंट्री में भी वो मोमेंट्स रिकॉर्ड किए गए हैं। सवाल- उन्मुक्त का बचपन, अंडर-19 वर्ल्ड कप, आईपीएल, अमेरिका शिफ्ट होना। ये सब फिल्म में है, लेकिन इसका अंत कैसे होगा? राघव- एक महान निर्देशक अल्फ्रेड हिचकॉक ने कहा था "जब आप फिल्म बना रहे होते हैं तो निर्देशक भगवान होता है, लेकिन जब आप डॉक्यूमेंट्री बना रहे होते हैं, तो भगवान ही निर्देशक होता है।" मैंने ये बात पहले पढ़ी थी, लेकिन उसका मतलब अब जाकर समझ में आया।जो कुछ उन्मुक्त के साथ बीत चुका था, उस पर मेरा पूरा कंट्रोल था।हमारी प्लानिंग थी कि 2024 टी-20 वर्ल्ड कप में उन्मुक्त अमेरिका की टीम से खेलेंगे और उनकी कहानी का एक ड्रीम एंडिंग होगा जैसे फिल्में खत्म होती हैं। लेकिन जब ये खबर आई कि उन्मुक्त का चयन नहीं हुआ, तो एक दोस्त के रूप में मुझे दुख हुआ और एक फिल्मकार के रूप में मेरी "परफेक्ट एंडिंग" भी टूट गई। इसके बाद मेरी एक नई यात्रा शुरू हुई एक बेहतरीन अंत की तलाश में। मैं दोबारा अमेरिका गया। उन्मुक्त से मिला और उसे एक छत पर ले गया ।जहां सिर्फ मैं और वो थे। मैं जानता था कि जो मैं करने जा रहा हूं, वो कैमरे के सामने अकेले में ही संभव है।मैंने कैमरा ऑन किया और हमने एक गहराई भरी बातचीत शुरू की।उस बातचीत में उन्मुक्त की आंखें भर आईं। मैं मन ही मन सोच रहा था काश इस पल में बारिश हो जाती।और यकीन मानिए, 30 सेकेंड के भीतर ही बारिश शुरू हो गई। वहीं पर मुझे लगा यही है इस कहानी का असली अंत।एक ऐसा अंत जो बताता है कि कभी कोई “डेड एंड” नहीं होता। हर मोड़ एक नया रास्ता बन सकता है।यह फिल्म हर उस इंसान को उम्मीद देगी जिसने कभी हार मान ली हो या जिसे दुनिया ने भुला दिया हो।
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