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    बिहार चुनाव पर पंकज त्रिपाठी का संदेश:वोट हमारा अधिकार है और वोट से ही हम अपना नेता चुन सकते हैं

    1 week ago

    बिहार में कुछ ही दिनों में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। चुनावी माहौल के बीच एक्टर पंकज त्रिपाठी ने दैनिक भास्कर के जरिए लोगों से खास अपील की है। पंकज त्रिपाठी ने कहा, अबरी छठो मनाईं और मतदान भी करीं, अइसन बढ़िया मौका कहां मिली। हम मेट्रो शहरों की तरह वोट के दिन ‘हॉलिडे’ नहीं मनाते। बिहार राजनीति के लिहाज से हमेशा से जागरूक रहा है। वैशाली गणराज्य से लेकर मगध साम्राज्य, चंपारण के नील आंदोलन से लेकर 1974 के संपूर्ण क्रांति आंदोलन तक हमारी राजनीतिक समझ और सक्रियता पूरे देश में जानी जाती है। मैं गोपालगंज के अपने गांव में भी अक्सर लोगों से बातचीत में यही बातें करता रहा हूं। मैंने गांव वालों से कहा कि सबसे ईमानदार व्यक्ति चुनकर वोट दीजिए। इस पर गांव वालों ने एक उम्मीदवार का नाम लेकर कहा- ’उ ईमानदार रहन त मुखिया के चुनाव में 15 वोट आइल रहे।’ मैंने उन्हें समझाया कि देखिए, उस व्यक्ति को तो यह लगा कि इलाके के 15 लोग मुझे ईमानदार मानते हैं। यही सोचकर उसका हौसला बढ़ेगा। अगली बार वह और मेहनत करेगा, चुनावी प्रक्रिया में ज्यादा सक्रिय होगा। हमें वोटरों को यह समझना होगा कि वोट देकर ही अपने विचार को बढ़ाया जा सकता है। वोट हमारा अधिकार है। मैं खुद चुनाव आयोग का ब्रांड एंबेसडर रह चुका हूं। 2000 तक बिहार में वोटर भी रहा, लेकिन मुंबई शिफ्ट हुआ तो वहीं का वोटर बन गया। गोपालगंज के गांव से अपना नाम कटवा लिया। एक जागरूक नागरिक की तरह मैंने बाकायदा जिला निर्वाचन पदाधिकारी को फोन कर नाम हटवाया था। हम बिहारी रोजी-रोटी के लिए देश के कई राज्यों में फैले रहते हैं, लेकिन छठ, होली या दिवाली में से किसी एक मौके पर गांव जरूर पहुंचते हैं। इस बार छठ पर्व के आस-पास ही मतदान होने की संभावना है। अबरी छठो मनाईं और मतदान भी करीं। गांव के लोगों से मिलेंगे, विचार साझा करेंगे और वोट भी देंगे। मतदान के वक्त यह भी देखना जरूरी है कि सीओ-बीडीओ दफ्तर में जनता का काम कितनी आसानी से होता है। परखना होगा कि कौन उम्मीदवार गांव की समस्याओं को समझता है। काम करने की क्षमता रखता है। हम मेट्रो शहरों की तरह मतदान के दिन छुट्टी मनाने वाले लोग नहीं हैं। बिहार का वोटर मतदान को ‘हॉलिडे’ नहीं मानता, जबकि बड़े शहरों में कई लोग उस दिन छुट्टी समझकर वोट देने से बचते हैं। हमारे गांवों में तो मतदान से 2-3 दिन पहले से ही तैयारी शुरू हो जाती है। माहौल रहता है कि ‘आज हमारा दिन है’। वोट से ही हम अपना नेता चुन सकते हैं। हम बिहारी बिहार में ही काम करें..., इस विश्वास के साथ पार्टियों को आगे आना होगा।
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