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    सान्या मल्होत्रा का मेंस राइट्स ग्रुप को करारा जवाब:बोलीं- कहानी अपनी मंजिल तक पहुंच चुकी है; फिल्म 'मिसेज' को बताया था टॉक्सिक

    2 weeks ago

    एक्ट्रेस सान्या मल्होत्रा हाल में फिल्म ‘मिसेज’ में नजर आई थीं। इस फिल्म में एक घरेलू महिला की कहानी दिखाई गई थी, जो अपने अधिकारों के लिए लड़ती है। ‘मिसेज’ के रिलीज के बाद इसे लेकर लोग दो ग्रुप में बंटे दिखे थे। जहां महिलाएं इस फिल्म को पसंद कर रही थीं, वहां कई पुरुष संगठनों ने इसकी आलोचना की थी। मेंस राइट्स ऑर्गेनाइजेशन सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन ने फिल्म पर एक तरफा फेमिनिन नैरेटिव दिखाने का आरोप लगाता हुए, इसे टॉक्सिक बताया था। हाल ही में सान्या ने इस मुद्दे पर अपनी राय रखी है। सीएनएन-न्यूज18 शी शक्ति 2025 के एक सेशन के दौरान सान्या ने कहा कि लोग फिल्म की आलोचना करते रहे क्योंकि इसमें कुछ घरों में महिलाओं की स्थिति की वास्तविकता को दिखाया गया है, जहां उन्हें काम करने की भी अनुमति नहीं है। सान्या ने कहा, 'समस्या ये नहीं है कि खाना नहीं बनना चाहती है। वो खाना बना रही थी। वो तो थाली में सजा के भी दे रही है, परिवार के जीरो एप्रिसिएशन के बावजूद। प्रॉब्लम तब आती है, जब वह कुछ करना चाहती थी। उसने परिवार को दिखाया कि मैं घर का काम करने में सक्षम हूं और मैं बाहर जाकर कुछ ऐसा करना चाहती हूं जो मुझे पसंद है। और वो उसको करने नहीं दिया जा रहा,वो आजादी नहीं दिया जा रही।' वो आगे कहती हैं- 'जिनके पास कहानी पहुंचनी थी वहां पहुंच चुकी है।' बता दें कि फरवरी में फिल्म के रिलीज होने के बाद, मेंस राइट ऑर्गेनाइजेशन (SIFF) ने फिल्म की कड़ी आलोचना की और इसमें टॉक्सिसिटी का आरोप लगाया था। एसआईएफएफ ने एक्स पर ट्वीट की एक सीरीज पोस्ट की थी। उसमें लिखा था- ‘कैसे आदमी कंस्ट्रक्शन साइट, रेलवे स्टेशनों, हवाई अड्डों, कारखानों, कोर्ट, पुलिस स्टेशनों, रेस्टोरेंट और देश के बॉर्डर पर 8-9 घंटे काम करते हैं। एक खुश यंग वीमेन का अपने ससुर के लिए खाना बनाना, बर्तन धोना और कपड़े प्रेस करना उसके लिए अत्याचार है।’ अपने एक दूसरे ट्वीट में उन्होंने लिखा था- ‘महिलाएं स्वाभाविक रूप से मानती हैं कि वर्कप्लेस का मतलब कंफर्टेबल एयर कंडीशन प्लेस होता है। वे कंस्ट्रक्शन साइट या रेलवे स्टेशनों आदि पर काम को संभावित वर्कप्लेस नहीं मानती हैं।’ एक और ट्वीट में उन्होंने लिखा था- 'सब्ज़ियां काटते, गैस स्टोव पर खाना पकाते या ग्लव्स पहनकर बर्तन धोते समय एक महिला को कैसा तनाव महसूस होता है? बिल्कुल नहीं, कुछ भी नहीं। असल में खाना पकाना एक मेडिटेशन की तरह होता है। क्या कपड़े प्रेस करना या वॉशिंग मशीन में कपड़े धोना अत्यधिक तनावपूर्ण है?' एसआईएफएफ ने अपने ट्वीट में ये तक कह दिया था कि पुरुषों को कभी भी 50% घरेलू काम में हाथ नहीं बंटाना चाहिए, क्योंकि घर का 70-80% मैटेरियल, कपड़े, फर्नीचर और गैजेट महिलाओं की चाहत और उनकी एंजॉयमेंट है।
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