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    भागवत बोले- संघ जितना विरोध किसी संगठन का नहीं हुआ:टैरिफ विवाद के बीच कहा- इंटरनेशनल ट्रेड किसी दबाव में नहीं होगा

    2 weeks ago

    RSS प्रमुख मोहन भागवत ने बुधवार को कहा- जितना विरोध राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का हुआ है, उतना किसी भी संगठन का नहीं हुआ। इसके बावजूद स्वयंसेवकों के मन में समाज के प्रति शुद्ध सात्विक प्रेम ही है। इसी प्रेम के कारण अब हमारे विरोध की धार कम हो गई है। अमेरिकी टैरिफ विवाद के बीच उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भरता जरूरी है, देश आत्मनिर्भर होना चाहिए। स्वदेशी चीजों का मतलब विदेशों से संबंध तोड़ना नहीं है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार तो चलेगा, लेन-देन होगा। लेकिन किसी के दबाव में नहीं होगा। भागवत ने स्वयंसेवकों से कहा- नेक लोगों से दोस्ती करें, उन लोगों को नजरअंदाज करें जो नेक काम नहीं करते। अच्छे कामों की सराहना करें, भले ही वे विरोधियों द्वारा किए गए हों। गलत काम करने वालों के प्रति क्रूरता नहीं, बल्कि करुणा दिखाएं। संघ में कोई प्रोत्साहन नहीं, बल्कि कई हतोत्साहन हैं। स्वयंसेवकों के लिए कोई इंसेंटिव नहीं मिलता। भागवत ने कहा- लोग जब पूछते हैं कि संघ में आकर क्या मिलेगा तो हमारा जवाब होता है कि कुछ नहीं मिलेगा जो तुम्हारे पास है वो भी चला जाएगा। यहां हिम्मत वालों का काम है। इसके बाद भी स्वयंसेवक काम कर रहे हैं क्योंकि समाज की निस्वार्थ सेवा करने के बाद उन्हें जो सार्थकता मिलती है उसका आनंद अलग होता है। भागवत की स्पीच की बड़ी बातें... हिंदुत्व की परिभाषा- भारत का लक्ष्य विश्व कल्याण है। स्वयंसेवक जानता है कि हम हिंदू राष्ट्र के जीवन मिशन के विकास की दिशा में काम कर रहे हैं। हिंदुत्व क्या है, हिंदूपन क्या है, हिंदू की विचारधारा क्या है। इन सबका जवाब है सत्य और प्रेम। दुनिया अपनेपन से चलती है। धर्म में कन्वर्जन नहीं होता- विश्व शांति और विश्व धर्म के लिए हिंदू समाज का संगठित होना जरूरी है। धर्म सब जगह जाना चाहिए इसका मतलब कन्वर्जन नहीं करना है। धर्म में कन्वर्जन होता भी नहीं है। धर्म एक सत्य तत्व है, जिसके आधार पर सब चलता है। आर्थिक उन्नति के नुकसान- आर्थिक उन्नति पर्यावरण के लिए नाशक है। इससे गरीब-अमीर के बीच दूरी बढ़ रही है। साथ ही दक्षिण के देश शिकायत करते हैं कि हमें लूटा जा रहा है। इस पर चर्चा होती है और लीपा-पोती जैसे उपाय भी आते हैं। लेकिन समस्याएं गई नहीं हैं। देश में 40 गुना अच्छाई मौजूद- भारत में जितनी बुराई दिखती है। समाज में उससे 40 गुना ज्यादा अच्छाई मौजूद है। यदि कोई सिर्फ मीडिया रिपोर्टों के आधार पर भारत का आकलन करने वाला गलत ही होगा। हिंदू-इस्लाम के बीच दूरी कम हो- हिंदू विचार वसुधैव कुटुम्बकम वाला है। हर रास्ते को अच्छा मानता है। इस्लाम धर्म भी वहीं पहुंचता है। लेकिन दोनों धर्म और समाज के बीच जो दूरियां हैं उन्हें दूर करने के लिए दोनों ओर से प्रयास करने की जरूरत है। कानून हाथ में नहीं लेना चाहिए- सभी हालात में संविधान, नियमों और कानूनों का पालन करना चाहिए। उकसावे की स्थिति में भी कानून को अपने हाथ में नहीं लेना चाहिए। आजकल किसी भी बात पर टायर जलाओ, पत्थर फेंको ये होता है। हाथ में कानून नहीं लेना चाहिए। उपद्रवी इसका फायदा उठाते हैं। दुनिया के भारत जरूरी- हम रहें या न रहें, भारत रहना चाहिए। दुनिया के लिए भी भारत जरूरी है क्योंकि धर्म देने वाला दूसरा देश नहीं है सिर्फ हम हैं। विश्व गुरु पद अत्यंत विनम्रता से सिखाना है। स्वामी विवेकानंद कहते थे, भारत धर्म प्रधान देश है। दुनिया को समय-समय पर धर्म सिखाना भारत का कर्तव्य है। उसके लिए भारत को तैयार करना पड़ेगा। कार्यक्रम की 2 तस्वीरें... कल कहा था- सभी की श्रद्धा का सम्मान करें मंगलवार को कार्यक्रम के पहले दिन सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा था कि हिंदू वही है, जो अलग-अलग मान्यताओं वाले लोगों की श्रद्धा का सम्मान करे। हमारा धर्म सभी के साथ समन्वय का है, टकराव का नहीं। उन्होंने कहा था कि पिछले 40 हजार वर्षों से अखंड भारत में रह रहे लोगों का डीएनए एक है। अखंड भारत की भूमि पर रहने वाले और हमारी संस्कृति, दोनों ही सद्भाव से रहने के पक्षधर हैं। भारत के विश्व गुरु बनने की बात पर कहा कि भारत को दुनिया में योगदान देना है और अब यह समय आ गया है। मंगलवार को कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, अनुप्रिया पटेल, भाजपा सांसद कंगना रनौत और बाबा रामदेव समेत अन्य हस्तियां शामिल हुईं थीं। पूरी खबर पढ़ें... कार्यक्रम में 1300 लोगों को निमंत्रण संघ ने विभिन्न क्षेत्रों से 17 कैटेगरी और 138 सब-कैटेगरी के आधार पर 1300 लोगों को निमंत्रण भेजा है। पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, नोबेल विजेता कैलाश सत्यार्थी, क्रिकेटर कपिल देव और ओलिंपिक गोल्ड मेडलिस्ट अभिनव बिंद्रा इसमें भाग लेंगे। कई देशों के राजनयिक भी मौजूद रहेंगे। साथ ही, कार्यक्रम में मुस्लिम, ईसाई, सिख समेत सभी धर्मों के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे। दरअसल, RSS की स्थापना 1925 में दशहरा के अवसर पर हुई थी। इस साल RSS की स्थापना को 100 साल पूरे हो रहे हैं। इसको लेकर संघ की ओर से शताब्दी समारोह मनाया जा रहा है। कार्यक्रम का शेड्यूल आरएसएस प्रवक्ता सुनील आंबेकर ने बताया कि भागवत इस दौरान देश के भविष्य, संघ की दृष्टि और स्वयंसेवकों की भूमिका पर विचार रखेंगे। तीसरे दिन वे प्रतिभागियों के सवालों के जवाब देंगे। कार्यक्रम का सीधा प्रसारण मीडिया और सोशल मीडिया पर होगा। आगे ऐसी व्याख्यान श्रृंखलाएं बेंगलुरु, कोलकाता और मुंबई में भी आयोजित होंगी। संघ सभी धर्म और वर्गों के बीच पैठ बनाना चाहता है RSS का मानना है कि समाज से सीधा संवाद ही उनके विचार और दृष्टिकोण समझने का सबसे अच्छा तरीका है। यह आयोजन न सिर्फ संघ की 100 साल की यात्रा दिखाएगा, बल्कि धर्मों और वर्गों के बीच संवाद और सह-अस्तित्व की नई संभावनाओं को भी बढ़ावा देगा।
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